परम पूज्यनीय माँ शारदे, आदरणीय जस्टिस राजीव भारती जी, आदरणीय जस्टिस विजय डूंगरवाला जी, आदरणीय प्रोफेसर एस.सी.मिश्र जी, आदरणीय अन्यान्य सभी अतिथि महोदय एवं सभी साथियों,
दोस्तों, जैसा कि आपको विदित ही है आज हम अपना 31वाँ विधि दिवस मानाने के लिए यहाँ इस सभागार में उपस्थित हुए है | आज के दिन को यानि 26 नवम्बर को विधि दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा सर्वप्रथम इस देश के प्रख्यात विधिवेत्ता स्व डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के प्रयासों और सुप्रीम कोर्ट बार एशोशिएशन द्वारा सन 1979 में प्रारंभ हुयी....ताकि हम भारत के लोग अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें उन २०७ महान हुतात्माओं के प्रति जो की संविधान सभा के सदस्य थे तथा जिन्हें हम फाउन्डिंग फादर्स भी कहते है | आपको मालूम ही होगा कि संविधान सभा की पहली बैठक दिनांक 9 दिसंबर सन 1946 को बुलाई गयी ...एवं दो साल ग्यारह महीने अट्ठारह दिन तक काफी गहन विचार विमर्श एवं कुल 165 बैठकों के बाद यह 'पवित्र दस्तावेज' हमें प्राप्त हो सका ताकि 'हम भारत के लोग' इसे आत्मार्पित कर सकें | गौर करेंगे तो पाएंगे कि विधि के शासन की कल्पना एक सभ्य समाज में की जाती रही है...वह 'रुल ऑफ़ ला' अर्थात विधि का शासन हमारे संविधान के ताने-बाने के एक सुनहरे धागे के रूप में पिरोया गया है |
विधि दिवस मनाये जाने का एक और कारण जो कि मुझे समझ आता है वह है कि इस दिन हम सभी अपना मूल्यांकन कर सकें कि क्या वास्तव में हम उन सपनों पर खरे उतर सकें है जो कि हमारे फाउन्डिंग फादर्स..हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें संविधान सौंपते हुए देखे थे ..? क्या वास्तव में हमारी न्याय व्यवस्था एक सही दिशा में आगे अग्रसर है ..? ऐसे कई अन्यान्य सवाल है जो कि एक विधि छात्र होने के नाते एवं समाज में घट रही घटनाओं को देखने के बाद हमारे मन में आते ही होंगे !
मित्रों जैसा कि समय समय पर विभिन्न न्यायविदों, सामाजिक, राजनैतिक विचारकों द्वारा हमारी न्याय व्यस्था की तमाम कमियों कि तरफ विभिन्न माध्यमो द्वारा इंगित किया जाता रहा है ...! खैर उन कमियों की हम चर्चा करें जैसा कि मुझे आदेशित किया गया है उससे पहले मै बड़ी जिम्मेवारी के साथ आपसे कहना चाहूँगा कि बेशक हमारी न्यायपालिका में कयी कमियां हो सकती है परन्तु अगर हम तठस्थ होकरजांचेंगे तो पाएंगे कि हमारी उपलब्धिया इन कमियों से कईयों गुना अधिक है ! आपको बताना चाहूँगा कि हमारी न्यायव्यवस्था दुनिया कि सबसे प्राचीन न्याय व्यवस्था रही है और आपको जानकर गर्व कि अनुभूति होगी कि फिलीपिंस नामक एक देश है जिसकी सर्वोच्च न्यायलय में भगवान मनु की एक स्फटिक की प्रतिमा लगी है जिसके नीचे अंकित है कि "दुनिया का पहला महामानव जिसने दुनिया वालों को प्रथम विधि संहिता प्रदान की |" जब से हमारा संविधान लागु हुआ तभी से निरंतर हमारी न्यायपालिका ने विधायिका या कार्यपालिका द्वारा जब जब भी नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया गया है तब तब हमारी न्यायव्यवस्था ने आगे बढ़कर आम आदमी के उन अधिकारों की रक्षा की तथा उसका विश्वाश विधि के शासन में दृढ किया है ! एक और उपलब्धि कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जब जब मदमस्त हाथी की भांति अपनी सीमाए लांघने का काम किया गया है तब तब हमारी न्यायपालिका ने ही अंकुश लगाकर उसे वश में किया है ! इन ६२ वर्षों में हमारा देश आपातकाल, भ्रष्टाचार, पडोशी देशों द्वारा आक्रमण एवं अन्य विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक उतार चढ़ावों से गुजरा है ...और प्रत्येक समय हमारी न्यायपालिका ने देश की एकता, अखंडता एवं आम आदमी के न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वाश को अक्षुण बनाये रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है | ऐसी एक अनंत श्रंखला है हमारी उपलब्धियों की कि जिन पर गर्व की अनुभूति होना स्वाभाविक ही है |
परन्तु यह भी सच है कि इन उप्लाभ्धियों की आड़ लेकर अगर हमने अपनी कमियों को नज़रंदाज़ करने की कोशिश की तो बेशक हमारी गिनती उन अमीर बाप की बिगड़ी हुयी औलादों की तरह की जाएगी कि जिनके पास बखारने के लिए खानदानी उपलब्धिया तो बहुत परन्तु उन उपलब्धियों को बढ़ाने या बचाने के प्रयास वो औलादें नहीं किया करती..! और इस प्रकार अगर हम अपनी कमियों को ढूँढने का प्रयास करते है तो जो सबसे प्रमुख कमी सामने आती है वह है हमारी अदालतों में लंबित मुकदमों कि बढ़ती संख्या जो कि एक विशाल पहाड़ का रूप ले चुकी है ! 2010 में NCR की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश की अदालतों में 3 करोड़ 13 लाख से अधिक मुकदमे लंबित थे ...जिनमे से लगभग 55 हज़ार मुकदमे सर्वोच्च न्यायलय में, 4 लाख के करीब मुकदमे देश की विभिन्न 21 उच्च न्यायालयों में एवं शेष 2 करोड़ 70 लाख मुकदमे निचली अदालतों में लंबित थे ! एक अनुमान के मुताबिक इन मुकदमों को निस्तारित करने में कम से कम 300 साल लगेंगे ! ये आंकडे आम आदमी को त्वरित न्याय देने की संकल्पना को कमज़ोर नहीं करते है क्या..?
एक अन्य कमी जो की सामने आती है वह है हमारे देश में न्यायधीशों के पदों की रिक्तता ! पूर्व विधि मंत्री ने संसद में कहा था की एक सभ्य समाज के लिए ये आवश्यक है कि उस समाज में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर कम से कम 50 न्यायाधीशों कि नियुक्ति होनी चाहिए ! और आप हैरान रह जायेंगे जानकर कि हमारे देश में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर मात्र 10 -12 न्यायाधीश ही नियुक्ति हैं ! यह अनुपात सम्पूर्ण विश्व में सबसे कम है ! एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर 114 न्यायाधीशों कि नियुक्ति है, इंग्लैण्ड में यही आंकड़ा 55 न्यायाधीश प्रति दस लाख कि आबादी पर है ! विधि आयोग कि जो 120वीं रिपोर्ट आयी उसमे इस रिक्तता को इन लंबित वादों में सबसे बड़ा कारक माना गया !
दूसरी तरफ हम देखते है कि न्यायपालिका में आधारभूत ढांचे मसलन इमारतों, स्टाफ, आदि में भी कमी चिंताजनक है ! अभी पिछले साल प्रदेश के कई विधि विद्यालयों से विधि छात्रों, और प्रदेश के कुछ प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं के एक दल ने एक अभियान के तहत पूरे प्रदेश की जिला अदालतों का भ्रमण किया ! सौभाग्य से चूँकि मै भी उस दल का हिस्सा था अतः इस कमी को नजदीकी से इन अदालतों में मैंने देखा ! आपको बताना चाहूँगा कि इस दौरान जब हम लोग श्रावस्ती जिले की अदालत में पहुचे तो देखकर हैरान रह गया कि वहा की अदालत आमने-सामने के दो किराये के घरों में चल रही है ..! कमोबेश देश के विभिन्न हिस्सों में यही स्थिति है !
एक और कमी वह यह कि दिन पर दिन हमारी न्यायपालिका में आने वाले व्यक्तियों की योग्यता में कमी आती जा रही है ! पिछले दिनों देश के सुप्रसिद्द न्यायविद स्व० नानी जी पालखीवाला की पुस्तक ‘We The People’ पढ़ी..उसमे उन्होंने लिखा कि “There is no excellence in law without excellence in lawyers.”
और मई अगर उनकी बात को आगे बढ़ाऊ तो मुझे कहना होगा कि There is no excellence in lawyers without excellence in legal aducation system in India.
खैर संतोष की बात ये है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे प्रयासों में तेज़ी आयी है की जिससे इन सारी कमियों को दूर किया जा सके और मुझे पूरा विश्वाश है कि हमारी न्याय व्यवस्था अपने में वो सब जरूरी सुधार करेगी जिससे की आम जन का विश्वाश उसमे बना रहे !
अंत में...यहाँ मौजूद सभी लोग चूँकि विधि के क्षेत्र में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़े है अतः ऐसे में हमारी जिम्मेदारी सम्पूर्ण समाज के प्रति सबसे अधिक होना स्वाभाविक ही है इसलिए.. आइये इस विधि दिवस के अवसर पर यहाँ मौजूद हम सभी यह संकल्प ले हम समाज के प्रत्येक वर्ग विशेषकर गरीब एवं पिछड़े लोगों की सेवा में अपने आप को तत्पर रखेंगे ताकि हमारा देश भारत दिन पर दिन एक विकसित और सक्षम राष्ट्र बन सके !
आप सभी को ह्रदय की गहराई से अनंत कोटि शुभकामनायें...बहुत बहुत धन्यवाद ! जय हिंद...वन्दे मातरम !!
दोस्तों, जैसा कि आपको विदित ही है आज हम अपना 31वाँ विधि दिवस मानाने के लिए यहाँ इस सभागार में उपस्थित हुए है | आज के दिन को यानि 26 नवम्बर को विधि दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा सर्वप्रथम इस देश के प्रख्यात विधिवेत्ता स्व डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के प्रयासों और सुप्रीम कोर्ट बार एशोशिएशन द्वारा सन 1979 में प्रारंभ हुयी....ताकि हम भारत के लोग अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें उन २०७ महान हुतात्माओं के प्रति जो की संविधान सभा के सदस्य थे तथा जिन्हें हम फाउन्डिंग फादर्स भी कहते है | आपको मालूम ही होगा कि संविधान सभा की पहली बैठक दिनांक 9 दिसंबर सन 1946 को बुलाई गयी ...एवं दो साल ग्यारह महीने अट्ठारह दिन तक काफी गहन विचार विमर्श एवं कुल 165 बैठकों के बाद यह 'पवित्र दस्तावेज' हमें प्राप्त हो सका ताकि 'हम भारत के लोग' इसे आत्मार्पित कर सकें | गौर करेंगे तो पाएंगे कि विधि के शासन की कल्पना एक सभ्य समाज में की जाती रही है...वह 'रुल ऑफ़ ला' अर्थात विधि का शासन हमारे संविधान के ताने-बाने के एक सुनहरे धागे के रूप में पिरोया गया है |
विधि दिवस मनाये जाने का एक और कारण जो कि मुझे समझ आता है वह है कि इस दिन हम सभी अपना मूल्यांकन कर सकें कि क्या वास्तव में हम उन सपनों पर खरे उतर सकें है जो कि हमारे फाउन्डिंग फादर्स..हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें संविधान सौंपते हुए देखे थे ..? क्या वास्तव में हमारी न्याय व्यवस्था एक सही दिशा में आगे अग्रसर है ..? ऐसे कई अन्यान्य सवाल है जो कि एक विधि छात्र होने के नाते एवं समाज में घट रही घटनाओं को देखने के बाद हमारे मन में आते ही होंगे !
मित्रों जैसा कि समय समय पर विभिन्न न्यायविदों, सामाजिक, राजनैतिक विचारकों द्वारा हमारी न्याय व्यस्था की तमाम कमियों कि तरफ विभिन्न माध्यमो द्वारा इंगित किया जाता रहा है ...! खैर उन कमियों की हम चर्चा करें जैसा कि मुझे आदेशित किया गया है उससे पहले मै बड़ी जिम्मेवारी के साथ आपसे कहना चाहूँगा कि बेशक हमारी न्यायपालिका में कयी कमियां हो सकती है परन्तु अगर हम तठस्थ होकरजांचेंगे तो पाएंगे कि हमारी उपलब्धिया इन कमियों से कईयों गुना अधिक है ! आपको बताना चाहूँगा कि हमारी न्यायव्यवस्था दुनिया कि सबसे प्राचीन न्याय व्यवस्था रही है और आपको जानकर गर्व कि अनुभूति होगी कि फिलीपिंस नामक एक देश है जिसकी सर्वोच्च न्यायलय में भगवान मनु की एक स्फटिक की प्रतिमा लगी है जिसके नीचे अंकित है कि "दुनिया का पहला महामानव जिसने दुनिया वालों को प्रथम विधि संहिता प्रदान की |" जब से हमारा संविधान लागु हुआ तभी से निरंतर हमारी न्यायपालिका ने विधायिका या कार्यपालिका द्वारा जब जब भी नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया गया है तब तब हमारी न्यायव्यवस्था ने आगे बढ़कर आम आदमी के उन अधिकारों की रक्षा की तथा उसका विश्वाश विधि के शासन में दृढ किया है ! एक और उपलब्धि कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जब जब मदमस्त हाथी की भांति अपनी सीमाए लांघने का काम किया गया है तब तब हमारी न्यायपालिका ने ही अंकुश लगाकर उसे वश में किया है ! इन ६२ वर्षों में हमारा देश आपातकाल, भ्रष्टाचार, पडोशी देशों द्वारा आक्रमण एवं अन्य विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक उतार चढ़ावों से गुजरा है ...और प्रत्येक समय हमारी न्यायपालिका ने देश की एकता, अखंडता एवं आम आदमी के न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वाश को अक्षुण बनाये रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है | ऐसी एक अनंत श्रंखला है हमारी उपलब्धियों की कि जिन पर गर्व की अनुभूति होना स्वाभाविक ही है |
परन्तु यह भी सच है कि इन उप्लाभ्धियों की आड़ लेकर अगर हमने अपनी कमियों को नज़रंदाज़ करने की कोशिश की तो बेशक हमारी गिनती उन अमीर बाप की बिगड़ी हुयी औलादों की तरह की जाएगी कि जिनके पास बखारने के लिए खानदानी उपलब्धिया तो बहुत परन्तु उन उपलब्धियों को बढ़ाने या बचाने के प्रयास वो औलादें नहीं किया करती..! और इस प्रकार अगर हम अपनी कमियों को ढूँढने का प्रयास करते है तो जो सबसे प्रमुख कमी सामने आती है वह है हमारी अदालतों में लंबित मुकदमों कि बढ़ती संख्या जो कि एक विशाल पहाड़ का रूप ले चुकी है ! 2010 में NCR की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश की अदालतों में 3 करोड़ 13 लाख से अधिक मुकदमे लंबित थे ...जिनमे से लगभग 55 हज़ार मुकदमे सर्वोच्च न्यायलय में, 4 लाख के करीब मुकदमे देश की विभिन्न 21 उच्च न्यायालयों में एवं शेष 2 करोड़ 70 लाख मुकदमे निचली अदालतों में लंबित थे ! एक अनुमान के मुताबिक इन मुकदमों को निस्तारित करने में कम से कम 300 साल लगेंगे ! ये आंकडे आम आदमी को त्वरित न्याय देने की संकल्पना को कमज़ोर नहीं करते है क्या..?
एक अन्य कमी जो की सामने आती है वह है हमारे देश में न्यायधीशों के पदों की रिक्तता ! पूर्व विधि मंत्री ने संसद में कहा था की एक सभ्य समाज के लिए ये आवश्यक है कि उस समाज में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर कम से कम 50 न्यायाधीशों कि नियुक्ति होनी चाहिए ! और आप हैरान रह जायेंगे जानकर कि हमारे देश में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर मात्र 10 -12 न्यायाधीश ही नियुक्ति हैं ! यह अनुपात सम्पूर्ण विश्व में सबसे कम है ! एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में प्रत्येक दस लाख कि आबादी पर 114 न्यायाधीशों कि नियुक्ति है, इंग्लैण्ड में यही आंकड़ा 55 न्यायाधीश प्रति दस लाख कि आबादी पर है ! विधि आयोग कि जो 120वीं रिपोर्ट आयी उसमे इस रिक्तता को इन लंबित वादों में सबसे बड़ा कारक माना गया !
दूसरी तरफ हम देखते है कि न्यायपालिका में आधारभूत ढांचे मसलन इमारतों, स्टाफ, आदि में भी कमी चिंताजनक है ! अभी पिछले साल प्रदेश के कई विधि विद्यालयों से विधि छात्रों, और प्रदेश के कुछ प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं के एक दल ने एक अभियान के तहत पूरे प्रदेश की जिला अदालतों का भ्रमण किया ! सौभाग्य से चूँकि मै भी उस दल का हिस्सा था अतः इस कमी को नजदीकी से इन अदालतों में मैंने देखा ! आपको बताना चाहूँगा कि इस दौरान जब हम लोग श्रावस्ती जिले की अदालत में पहुचे तो देखकर हैरान रह गया कि वहा की अदालत आमने-सामने के दो किराये के घरों में चल रही है ..! कमोबेश देश के विभिन्न हिस्सों में यही स्थिति है !
एक और कमी वह यह कि दिन पर दिन हमारी न्यायपालिका में आने वाले व्यक्तियों की योग्यता में कमी आती जा रही है ! पिछले दिनों देश के सुप्रसिद्द न्यायविद स्व० नानी जी पालखीवाला की पुस्तक ‘We The People’ पढ़ी..उसमे उन्होंने लिखा कि “There is no excellence in law without excellence in lawyers.”
और मई अगर उनकी बात को आगे बढ़ाऊ तो मुझे कहना होगा कि There is no excellence in lawyers without excellence in legal aducation system in India.
खैर संतोष की बात ये है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे प्रयासों में तेज़ी आयी है की जिससे इन सारी कमियों को दूर किया जा सके और मुझे पूरा विश्वाश है कि हमारी न्याय व्यवस्था अपने में वो सब जरूरी सुधार करेगी जिससे की आम जन का विश्वाश उसमे बना रहे !
अंत में...यहाँ मौजूद सभी लोग चूँकि विधि के क्षेत्र में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़े है अतः ऐसे में हमारी जिम्मेदारी सम्पूर्ण समाज के प्रति सबसे अधिक होना स्वाभाविक ही है इसलिए.. आइये इस विधि दिवस के अवसर पर यहाँ मौजूद हम सभी यह संकल्प ले हम समाज के प्रत्येक वर्ग विशेषकर गरीब एवं पिछड़े लोगों की सेवा में अपने आप को तत्पर रखेंगे ताकि हमारा देश भारत दिन पर दिन एक विकसित और सक्षम राष्ट्र बन सके !
आप सभी को ह्रदय की गहराई से अनंत कोटि शुभकामनायें...बहुत बहुत धन्यवाद ! जय हिंद...वन्दे मातरम !!